सरकार पूंजीपतियों के पक्ष में है और गरीबों के विरोध में!

कोरोना एक महामारी है जिससे पूरी दुनिया चिंतित है भारत का भी चिंतित होना लाजमी है क्योंकि भारत देश जैसे "गरीब मुल्क" में अगर इस बीमारी ने पांव पसार लिए तो मौत के आंकड़े आने वाले समय में सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे!

   और भारत में जो कोरोना पाजिटिव मरीजों की बढ़ती हुई संख्या दिख रही है वह बहुत ही भयावह और चिंतित करने वाली है, परंतु एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बीमारी से आम आदमी तो चिंतित है लेकिन क्या सरकारी स्तर पर सरकार चिंतित है? भारतीय संविधान में स्वास्थ्य संबंधी जिम्मेदारी सरकार के कंधों पर दे रखी है परंतु सरकार कहीं से भी कोरोना बीमारी को लेकर गंभीर दिखती हुई नजर नहीं आ रही है! सरकार केवल लॉकडाउन करने के स्तर पर ही गंभीर है!
                क्या केवल लॉकडाउन कर देने से इस बीमारी से निजात पाया जा सकता है? दुनिया के अधिकांश देशों में यहां तक कि चाइना के वुहान सिटी से जहां से कोरोना फैला केवल उस वुहान सिटी को ही चीन की सरकार ने लॉकडाउन घोषित किया न कि पूरे चीन को, इसी प्रकार दुनिया के अन्य अधिकांश देशों में जहां-जहां कोरोना फैला केवल उन इलाकों में ही लॉकडाउन घोषित किया गया न कि पूरे देश को!
  ताकि गरीबों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान न हो! परंतु ठीक इसके विपरीत भारत सरकार ने गरीबों के बारे में
किसी भी प्रकार का कोई विचार तक नहीं किया! जिसका परिणाम यह हुआ कि गरीब लोग भूखों मरना शुरू हो गये हैं!
 गरीबों में अगर कोरोना बीमारी फैल जाती है तो "जो गरीब डेली कुआं खोदो और डेली पानी पियो" की स्थिति में हैं ऐसे गरीब लोग प्राइवेट स्तर पर 4500 रू टेस्ट कराने के लिए उन्हें अपने जेब से देने होंगे, जो आम आदमी के लिए संभव नहीं है इतना ही नहीं यदि एक परिवार में अगर चार पांच व्यक्तियों को यदि इस बीमारी ने चपेट में ले लिया तो कल्पना नहीं किया जा सकता है कि उसके ऊपर क्या बीतेगी? कैसे वह इन पैसों की व्यवस्था करेगा? जमीन बेचकर या फिर जेवर गहने बेचकर  फिर अपनी किडनी बेच कर?
    भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद(ICMR) द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को कोरोना हो जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को सिंपल स्क्रीनिंग टेस्ट कराने के लिए प्रति व्यक्ति 1500रू देना पड़ेगा तथा पुष्टिकरण परीक्षण के लिए उसे ₹3000 देना पड़ेगा इस प्रकार कुल मिलाकर 4500 रुपए  एक बार में उसे देना पड़ेगा, तथा यह परीक्षण तीन बार होगा अतः तीन बार में कुल मिलाकर 13500 रू० की व्यवस्था उसे करनी पड़ेगी!जो आम आदमी के लिए संभव नहीं है!
  बांग्लादेश जैसा छोटा सा देश अपने देश के नागरिकों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए "कोरोना परीक्षण मुफ्त" में करने का निर्णय लिया है, बांग्लादेश सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के प्रमुख अबुल कलाम आजाद ने यह घोषित किया है कि बांग्लादेश में परीक्षण मुफ्त है उन्होंने कहा कि हमारी सरकार की यह नीति है कि अगर गरीब या अमीर जो कोई भी कोरोना से संक्रमित है वह सरकारी रोगी है हम उनकी मुफ्त में देखभाल करेंगे हमारी प्राथमिकता सभी की जांच करना है इस बात को सुनिश्चित करने के लिए हमने निजी प्रयोगशालाओं को निर्देश दिए हैं कि वे किसी भी बीमार व्यक्ति से पैसा नहीं वसूलेंगे!
     जबकि भारत सरकार द्वारा कोरोना जांच हेतु ज्यादा पैसा वसूलने को लेकर के सुप्रीम कोर्ट में 8 अप्रैल 2020 को जनहित याचिका दायर की गई 4 दिन बाद इस जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज सुनवाई करते हुए यह कहते हैं की इस बीमारी से संबंधित "फ्री जांच" केवल आयुष्मान कार्ड धारक को ही मिल सकता है बाकी सभी लोगों को पैसे देकर के कोरोना बीमारी की जांच करवानी होगी!
     हद तो तब हो गई जब भारत सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा आईसीएमआर के सहायक महानिदेशक आर० लक्ष्मीनारायण ने पेश किया और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को कहा कि भारत सरकार द्वारा कोरोना जांच से संबंधित 4500 रुपए प्रत्येक व्यक्ति से लेना सरकार ने जो तय किया है यह सरकार के नीतिगत फैसले के अंतर्गत आता है इसलिए सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए!
    विचार किया जा सकता है की ऐसे बहुत से गरीब हैं जिनके पास आयुष्मान कार्ड नहीं है, उनके लिए सरकार के पास वर्तमान में क्या नीतिगत योजना है?  दूसरी बात यह कि यह बीमारी केवल आयुष्मान कार्ड धारकों को ही तो नहीं होगी किसी भी व्यक्ति को हो सकती है इसके लिए सरकार के पास क्या योजना है?
 कोरोना महामारी में भारत सरकार के द्वारा लोगों को निजी क्षेत्र के हाथों सौंप देना  सीधे-सीधे निजी क्षेत्र में घुसे हुए चंद पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से यह सब किया जा रहा है! 
 जो संविधान द्वारा घोषित "कल्याणकारी राज्य" की अवधारणा को खत्म करने के बराबर है!
      ऐसा प्रतीत होता है कि भारत पूंजीवादियों के पक्ष में है और पूंजीवाद प्रत्येक नागरिकों के जीवन से जुड़ी हुई प्रत्येक चीजों तक पहुंच बना चुकी है यहां तक कि अब कोरोना से होने वाली बीमारी तक उनकी पहुंच हो चुकी है!
     और पूंजीवाद का एक ही लक्ष्य होता है कि अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहे वह भय दिखाकर ही क्यों न हो!
        दूसरी बात नरेंद्र मोदी सरकार ने 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों 68 लाख पेंशनर के डीए पर जून 2021 तक रोक लगा दी है सरकार का यह तर्क है कि भारत के कोरोना पीड़ितों का इस पैसे से इलाज किया जाएगा परंतु "कारपोरेट टैक्स" सरकार पूंजीपतियों के ऊपर नहीं लगाई!
      दूसरी बात अभी कुछ दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने नरेंद्र मोदी सरकार को 1 लाख 76 करोड़ करोड रुपए उपलब्ध कराए थे वह पैसा कहां गया? मोदी जी ने उस पैसे का क्या किया? उस पैसे को कहां खर्च किया? क्या उसका कहीं कोई हिसाब किताब है? आखिर मोदी सरकार उन अमीरों पर टैक्स क्यों नहीं लगाना चाहती है जिनकी आय कम से कम 1 करोड रुपए से अधिक है? मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल के 5 वर्षों में अपने सरकार के द्वारा किए गए कार्यों को विज्ञापनों के ऊपर 5726 करोड  खर्च किया, क्या इस प्रकार विज्ञापनों पर अंधाधुंध खर्च करने की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगानी चाहिए?
पूंजीपतियों पर कारपोरेट टैक्स लगाने की बजाय सरकार ने एशियन डवलपमेंट बैंक से 1.5 बिलियन डालर का कर्ज ले लिया क्या यह कर्ज लेना जरूरी था?
    इस आधार पर विचार किया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार क्या मजबूर मजदूरों के प्रधानमंत्री हैं या उन चंद पूंजीपतियों के प्रधानमंत्री हैं?
    
     
   

Comments

Popular posts from this blog

क्या मुसलमान होना गुनाह है? मुसलमान भारत का मूलनिवासी है!